ट्रेन वाला किस्स
अब थी ही ऐसी वो, क्या करता, समझ ही नही आया कुछ, ना उसे, ना मुझे...
काफ़ी सालों के बाद ट्रेन में टिकट बुक की थी, पुणे से दिल्ली, मिस कर रहा था वो ट्रेन का लम्बा सफ़र, जहां अपनी सीट पर बैठ कर घंटो बाहर देखना, वो पीछे जाता हुआ रास्ता..
वो आस पास सात सीटों पर अलग अलग कहानियाँ..
कुछ ऐसा ही हुआ उस दिन, मैं अपनी सीट पर बैठा था के अचानक एक पर्फ़्यूम की ख़ुशबू आयी, जल्दी में सोचा ऐसा पर्फ़्यूम साला कोई लड़का तो लगा नहीं सकता, मन में लड्डू फूटा..
उफ़्फ़, नज़रें गड़ा के रखी थी के कब लोग आगे बढ़ें और मेरे सामने वाली सीट पर एक ख़ूबसूरत लड़की आ के बैठ जाए..
आपने भी ऐसे सपने देखे होंगे जब भी ट्रेन में गए होंगे, आपने भी चेक किया होगा वो पैसेंजर लिस्ट जिस में आपके आस पास कोई लड़की बैठी है के नही..
ख़ैर, ख़ुशबू गहरी होती गयी, कदमों की आवाज़ ऊँची..
“इक्स्क्यूज़ मी”
“इक्स्क्यूज़ मी”
कानो में आवाज़ पड़ी, नज़रें उठायीं तो आँखें बड़ी हो गयी और मुँह खुला रह गया..
“Yes, हाउ केन आयी हेल्प यू” ,स्टाइल से मैंने कहा.
“आप मेरा बैग अपनी सीट के नीचे रख देंगे?”, उसने कहा.
“जी रख देता हूँ, आपकी सीट कौन सी है?” ( मेरा आख़िरी सवाल हम दोनो के बीच दूरी जानने के लिए)
“यही, आपके सामने”, उसने कहा.
(अचानक से बैक्ग्राउंड में गाना बजा मेरे मन में “नज़र के सामने, जिगर के पास कोई रहता है, वो हो तुम”)
सफ़र अच्छा कट रहा था, मैं उसे कनखियों से देख रहा था, वो मुझे.
आख़िर मैंने चुप्पी तोड़ी, “कहाँ से हैं आप”
“भोपाल से”
(मतलब दिल्ली आने से पहले ही उतर जाएगी ये, मेरे पास सिर्फ़ चार पाँच घंटे हैं मतलब, प्रॉसेस तेज़ करनी पड़ेगी मतलब)
“आप?” उसने पूछा ( हाय मन में लड्डू फूटा, मुझ में इंट्रेस्ट)
“पंजाब से”
“वाह” (आह)
“वहाँ वो पीले सरसों के खेत होते हैं ना”
“जी, मेरे घर के पीछे ही हैं, बिल्कुल आपके इस पीले सूट की तरह” ( ये मारा चौका)
“हाहा”
(हंसी मतलब बुरा नहीं माना, गुड सिग्नल)
“अच्छी लग रही हैं आप इस सूट में” ( उफ़्फ़, sixer, सीधा पर्सनल तारीफ़ पर आ गए, गुड वन चैम्पीयन)
“थैंक यू”
“कहाँ से ख़रीदा” (फ़ालतू सवाल)
“भोपाल से ही”
“कभी भोपाल आऊँगा तो घुमाएँगी आप” (गुड क्वेस्चन)
“हाहा, जी ज़रूर” ( मना नहीं किया, एक और गुड सिग्नल)
फिर वो भोपाल के बारे में बताने लगी, मैं सुनता जा रहा था संगीत उसके मुँह से..
लड़कियों को पता चल जाता है के कोई उनकी बात सुन रहा है या नहीं, और उन्हें देख रहा है के नहीं..
“क्या बात है?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा..
“तुम बहुत ख़ूबसूरत हो” ( ओह तेरी, अब क्या होगा!)
“अच्छा, इसलिए इतनी देर से देख रहे थे बिना मुझे सुने”
“हाँ”
“क्या ख़ूबसूरती है मुझ में”
“तुम्हारा गोरा रंग, लम्बे झूमके, , काली आँखें, पीला कुर्ता और ऐसी ख़ूबसूरती जो भटका दे”
“तो भटके?”
“हाँ”
“किस तरफ़”
“तुम्हारी तरफ़”
“टाइम वेस्ट नहीं करते ना तुम, सीधा पोईंट पर आ जाते हो”
“हाँ, वक़्त कम है, मेरे पास सिर्फ़ दो घंटे हैं, उसके बाद तुम उतर जाओगी”
“हाँ, मैं चली जाऊँगी”
“जानता हूँ, कहो मत”
“तो अब”
“अब मुझे तुम्हें एक किस्स करना है”
“ओह, डर नहीं लगा तुम्हें ये कहने में”
“नहीं, ज़्यादा से ज़्यादा मना कर दोगी ना, ग़ुस्सा हो जाओगी, दो घंटे चुप रहोगी, बस ना”
“बड़े प्रैक्टिकल हो”
“थोड़ा सा, वक़्त कम है ना”
“हम्म”
“तुमने मना नहीं किया किस्स करने से”
“हाँ, नहीं किया”
“मैं गेट के पास हूँ, पाँच मिनट में आ जाना वहाँ, अगर आयी तो हाँसमझ लूँगा और नहीं आयी तो ना”
“क्या लगता है तुम्हें?”
“तुम आओगी”
“कैसे आया भरोसा”
“तुम्हारी आँखों से”
“उफ़्फ़”
मैं डिब्बे के गेट के पास चला गया...
दो मिनट में वो ही ख़ुशबू पास आने लगी, वो ही पर्फ़्यूम...
वो गेट के पास आ के खड़ी हो गयी और मुस्कुराने लगी..
रात के दो बाज़ रहे थे, भोपाल एक घंटे में आने वाला था..
मैंने उसे अपनी बाहों में भींच लिया और अपने होंठ ले गया उसके होंठों के क़रीब, हमारी साँसे तेज़ हो गयीं थी, उसने आँखें बंद कर लीं, मैं आगे बढ़ा और जड़ दिए अपने होंठ उसके होंठों पर, कभी ऊपर वाला हिस्सा कभी नीचे वाले होंठों को काटा मैंने..
उसने भी मुक़ाबला शुरू कर दिया, शेरनी के जैसे झपटी मुझ पर और हमारे होंठ टकरा रहे थे बादलों की तरह, मेरे हाथ उसके बदन पर हर तरफ़ चक्कर लगा रहे थे..
ये सिलसिला तीस मिनट चला और फिर आयी खामोशी..
हम दोनो चुप, जैसे तूफ़ान के बाद की शांति..
“ये मेरी ज़िंदगी का सबसे अच्छा किस्स था”, उसने कहा.
“मेरा भी”
“इस लम्हे को ख़ूबसूरत रहने देते हैं, आगे टच में नहीं रहते हैं”, उसने कहा.
“पक्का?”
“हाँ पक्का”
कुछ देर में भोपाल आ गया..
उतरते हुए उसकी आँखों में पानी था, जब उसने मुड़ कर देखा..
मेरी आँखें भी नम थी..
कुछ सच्चा था शायद हम में..
#कहानीबाज़
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